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श्री चन्द्रप्रभस्वामी स्तवन देखण दे रे सखि मुने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुखचंद ....सखि० उपशम रसनो कंद सखि० सेवे सुरनर इंद .............सखि० गत कलिमल दुःख दंद, सखि मुने देखण दे..............१ सुहुम निगोदे न देखियो सखि० बादर अतिहि विशेष सखि० पुढवी आउ न पेखियो सखि० तेउ वाउ न लेश ... सखि० २ वनस्पति अति घण दीहा सखि० दीठो नहींय दीदार .सखि० बि-ति-चउरिंदि जललिहा सखि० गतसन्नि पण धार सखि० ३ सुरतिरि निरय निवासमां सखि० मनुज अनारज साथ सखि० अपज्जत्ता प्रतिभासमां सखि० चतुर न चढीयो हाथ सखि० ४ एम अनेक थल जाणिये सखि० दरिसण विणु जिनदेवसखि० आगमथी मति आणीये सखि० कीजे निर्मल सेव ... सखि० ५ निर्मल साधु भगति लही सखि० योगअवंचक होय .....सखि० किरियाअवंचक तिम सही सखि० फळअवंचक जोयसखि० ६ प्रेरक अवसर जिनवरु सखि० मोहनीय क्षय थाय......सखि० कामितपूरक सुरतरु सखि० आनंदघन प्रभुपाय..... सखि० ७
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