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पापी अभवि नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरीये.....विमल.५ भूमि संथारो ने नारीतणो संग, दूर थकी परिहरीये..विमल.६ सचित परिहारी ने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीये. ७ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करीये, पाप-पडल विखरीये. .... विमल.८ कलिकाले ए तीरथ मोहटुं, प्रवहण जिम भरदरीये. .विमल.९ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कहे भव तरीये.....विमल.१०
सिद्धाचल तीर्थ स्तवन एक दिन पुंडरीक गणधरू रे लाल, पूछे श्री आदि जिणंद सुखकारी रे; कइये ते भवजल ऊतरी रे लाल, पामीश परमानंद भववारी रे.
एक.१ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, नाण अने निरवाण जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे..
एक.२ इम निसुणी इहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्यां दूर तम वारी रे; पंच कोडी मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजूर भववारी रे..
एक.३ १७२
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