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जलधिमां तारो यथा, खेले स्वेच्छा भावे; तथा ज्ञानी जड वस्तुमां, खेले ज्ञान स्वभावे.. पंच वर्णनी माटीने, खाइ बने छे श्वेत; शंखनी पेठे ज्ञानी बहु, निःसंगी संकेत. देखे अज्ञानी बहिर, अंतर देखे ज्ञानी; ज्ञानीना परिणामनी, साक्षी केवलज्ञानी. ज्ञानीने सहु आस्रवो, संवर रूपे थाय; संवर पण अज्ञानीने, आस्रव हेतु सुहाय. पार्श्व प्रभुए उपदिश्यो ए, ज्ञान अज्ञाननो भेद; बुद्धि सागर आत्ममां, ज्ञानीने नहीं खेद.
श्री पार्श्वनाथ भगवान, चैत्यवंदन आश पूरे प्रभु पासजी, तोडे भव पास. वामा माता जनमीया, अहि-लंछन जास. अश्व सेन सुत सुख-करु, नव हाथनी काया. काशी देश वाणारसी, पुण्ये प्रभु आया....... एक सो वरस, आउखुं ए, पाली पार्श्व-कुमार. पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार.
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