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अन्तरदृष्टि अमृतवृष्टि, सहजानन्द स्वरूपरे; तन्मयता प्रभु साथे करती, शुद्ध समाधि अनुपरे......नमि० २ असंख्यप्रदेशी चेतन क्षेत्र, गुण अनंत आधाररे; उत्पत्ति व्यय ध्रुवता समये, द्रव्यपणुं जयकाररे........नमि० ३ ज्ञान-चरणपर्यायनी शुद्धि, मुक्ति प्रभु मुख भाखेरे; अस्ति नास्तिनी सप्तिभंगीथी, षड्द्रव्योने दाखेरे.......नमि० ४ शब्दादिक नय शुद्ध परिणति, उत्तर उत्तर साररे; कारणे कार्यपणुं नीपजावे, द्रव्यभावे निर्धाररे. .........नमि० ५ निमित्त पुष्टालंबन सेवी, उपादान गुण शुद्धिरे; शुद्ध रमणता योग करतो, पामे क्षायिक ऋद्धिरे......नमि० ६ सुखसागर कल्लोले चढियो, लही सामर्थ्य पर्यायरे; शुद्ध परिणति-चंद्र प्रकाशे, आनन्द क्यांये न मायरे. .नमि० ७ शुद्ध परिणति-चरण शरणमां, शुद्धोपयोगे रहीशुंरे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, स्वपर प्रकाशी थईशुरे. ... नमि० ८
श्री नमिनाथ स्तवन षट दरिषण जिन अंग भणीजे, न्यास षडंग जो साधे रे; नमि जिनवरनां चरण उपासक, षट दरिशन आराधे रे.ष० १
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