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श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन जीणंदजी एह संसारथी तार श्री मुनिसुव्रत भवजलपार उतार पद्मावतीजी को नंदन नीरखी हरखीत तन मन थाय, कच्छप लंछन प्रभु पद धारे श्यामल वर्ण सोहाय...... लोकांतिक सुर अवसर देखी, प्रतिबोध न आय राजकाज सब छोड देई प्रभु, संयमशुं चीत्त लाय ... .........२ तप जप सयंम ध्यानानलथी, कर्म इंधन जल जाय लोकालोक प्रकाश अद्भुत, केवलज्ञानी तुं थाय ............... ज्ञानमे भारी करुणाधारी, जीवदया चित्तलाय मित्रअश्व उपकार करन कुं, भरुअच्छ नगरमें आय ........४ अश्व उगारी बहुजन तारी, अजर अमर पद पाय ज्ञानविमल कहे महेर करो तो, हमने ते सुख थाय .........५
श्री नमिनाथ स्तवन नमिजिनवर! प्रभु! चरणमा लागुं, शुद्ध रमणता मांगुरे; बाह्यपरिणति टेव निवारी, शुद्धापयोगे जागुंरे...........नमि० १
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