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.तार०४
तार०५
कर्मदोषो हरी हर प्रभु! तु थयो, सत्य महादेव तुं छे सवायो.. शुद्धरूपे रमी राम तुं जग थयो, शुद्ध आनन्दतानो विलासी; हेम करतां थयो शुद्ध रहेमान तुं, शुद्ध चैतन्यता धर्मकाशी. नाम ने रूपथी भिन्न तुं छे प्रभु! जाणतो तत्त्व स्याद्वादज्ञानी; शरण तारुं ग्रह्यु, चरण तारुं लद्यु, रही नहीं वात हे नाथ! छानी. .. भक्तिना तोरना जोरमां प्रभु मळ्या, सहज आनंदना ओघ प्रगट्या; जाणुं पण कही शकुं केम निर्वाच्यने, सकल विषयोतणा फंद विघट्या. एकता लीनता भक्तिना तानमां, धेन आनंदनी दिल छवाइ; बुद्धिसागर प्रभु भेटीया भावथी, मुक्तिनी घेर आवी वधाई. ........
तार०६
तार०७
तार०८
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