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आतमध्यान करे जो कोउ, सो फिर इणमें नावे; वाग्जाल बीजुं सहु जाणे, एह तत्त्व चित्त चावे.. जेणे विवेक धरी ए पख वहियो, ते तत्त्वज्ञानी कहिये; श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो, आनंदघन पद लहिये... श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन
तार हो तार प्रभु! शुद्ध दिनकर विभु ! शरण तुं एक छे मुज स्वामी; ज्ञान-दर्शन धणी, सुख ऋद्धि घणी, नामी पण वस्तुतः तुं अनामी.... भोगी पण भोगना फंदथी वेगळो, योगी पण योगथी तुं निराळो; जाणतो अपर ने अपरथी भिन्न तुं, विगतमोही प्रभु ! शिव महालो. द्रव्य क्षेत्र अने काल ने भावथी, आत्मद्रव्ये प्रभु! तुं सुहायो; स्वगुणनी अस्तिता, नास्तिता परतणी, शुद्धाकारकमयी व्यक्ति पायो.
शुद्ध परब्रह्मनी पूर्णता पामीने, विष्णु जगमां प्रभु! तुं गवायो;
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मु०९
. मु० १०
तार० १
तार० २
तार० ३