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स्तुति विभाग
श्री ऋषभदेव स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया. सवि जिन सुखकारी, मोह मिथ्या निवारी; दुरगति दुःख भारी, शोक संताप वारी. श्रेणी क्षपक सुधारी, केवलानंत धारी; नमीए नरनारी, जेह विश्वोपकारी...... समवसरण बेठा, लागे जे जिनजी मिट्ठा; करे गणप पइट्ठा, इन्द्र चन्द्रादि दिट्ठा. द्वादशांगी वरिट्ठा, गुंथतां टाले रिट्ठा; भविजन होय हिट्ठा, देखी पुण्ये गरिट्ठा. सुर समकितवंता, जेह रिद्धे महंता; जेह सज्जन संता, टालीए मुज चिंता. जिनवर सेवंता, विघ्न वारे दुरंता; जिन उत्तम थुणंता, पद्मने सुख दिता.
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