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श्री ऋषभदेव स्तुति प्रह ऊठी वंदूं, ऋषभ देव गुणवंत; प्रभु बेठा सोहे, समवसरण भगवंत. त्रण छत्र विराजे, चामर ढाले इंद्र; जिनना गुण गावे, सुर नर नारीना वृंद.... बार परषदा बेसे, इंद्र इंद्राणी राय; नव कमल रचे सुर, जिहां ठवता प्रभु पाय. देव दुंदुभि वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत; एवा जिन चोवीस, पूजो एकण चित्त... जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार; प्रभु अरथ प्रकाशे, रचना गणधर सार. सो आगम सुणतां, छेदीजे गति चार; जिन वचन वखाणी, लहीये भवनो पार. यक्ष गोमुख गिरुओ, जिननी भक्ति करेव; तिहां देवी चक्केसरी, विघन कोडी हरेव. श्री तपगच्छ नायक, विजयसेन सूरिराय; तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुण गाय
भक्तामर पादपूर्ति ऋषभदेव स्तुति भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि-प्रभाणा-,
मुद्दीपकं जिन! पदाम्बुज-यामलं ते;
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