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गोडी प्रभु पार्श्वचिंतामणी, थंभणो अहि छतो देव रे जगवल्लभ तु जग जागतो, अंतरिक्ष वरकाणा करु सेव श्री शंखेश्वर पुरी मंडणो, पार्श्व जिन प्रणत तरु कल्प रे वारजो दुष्टना वृंदने सुजस सौभाग्य सुख कंद रे श्री पार्श्वनाथ स्तवन
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पूर्णानन्दमांरे, पार्श्वप्रभु! जयकारी; ध्रुवता शुद्धतारे, शाश्वत सुख भंडारी.
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आईबसो भगवान मेरे मन आई,
में निर्गुणी इतना मांगत हुं हो वे मेरो कल्याण मेरे मन की तुम सब जाणो, क्या करूं आपसे ध्यान विश्वहितैषीदिन दयालु रखीये मुजपर ध्यान. भोगाधीन होवत मन मेलु बिसरी तुम गुणगान वहांसे छुडाओ, हृदये आयी अरिभंजनक भगवान. आप कृपासे तर गये केई रह गया मे दर्दवान
निगाह रखके निर्मल कीजीए धनवंतरी भगवान .......४ श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर दीजीए तुम गुणगान इनही सहारे चिद्धन सेवा बनुंगां आपसमान.
श्री पार्श्वनाथ स्तवन
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पूर्णा० १