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तपगच्छ नायक गुणनीलो ए, श्री विजय सेन सूरिराय तो; ऋषभदास पाय सेवतां ए, सफल करो अवतार तो..........४
पंचमी तिथि स्तुति पंचानन्तक-सुप्रपंच-परमानन्द-प्रदान-क्षमं, पंचानुत्तर-सीम-दिव्य-पदवी-वश्याय मन्त्रोपमम्; येन प्रोज्ज्वल-पंचमी-वरतपो व्याहारि तत्कारणं, श्री-पंचानन-लांछनः स तनुतां श्री वर्द्धमानः श्रियम्. ये पंचाश्रव-रोध-साधन-पराः पंच-प्रमादा-हराः, पंचाणु-व्रत पंच-सुव्रत-धराः प्रज्ञापना-सादराः; कृत्वा पंच-हृषीक-निर्जय-मथो प्राप्ता गतिं पंचमी, तेमी-संयम पंचमी-व्रतभृतां तीर्थंकराः शंकराः...... पंचाचार-धुरीण-पंचम-गणाधीशेन संसूत्रितं, पंचज्ञान-विचार-सार-कलितं पंचेषु-पंचत्वदम्; दीपाभं गुरु-पंचमार-तिमिरे-ष्वेकादशी-रोहिणी-, पंचम्यादि-फल-प्रकाशन पटुं ध्यायामि जैनागमम्. पंचानां परमेष्ठिनां, स्थिरतया श्री पंचमेरु-श्रियं, भक्तानां भविनां गृहेषु बहुशो या पंचदिव्यं व्यधात्;
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