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प्रवे पंच-जगन्-मनोमति-कृतौ स्वारत्न-पांचालिका, पंचम्यादि-तपोवतां भवतु सा सिद्धायिका त्रायिका............४
आठम की चार स्तुति की एक स्तुति अष्टमी अष्टमी गति दिये, महावीर प्रकाशे, सर्वे तीर्थंकर कथे, आठ कर्म विनाशे; केवलज्ञान प्रकाशती, श्रुतज्ञाने आराधे, शासनदेवनी सहायथी, संत मुक्तिने साधे. .............
अगिआरश की चार स्तुति की एक स्तुति एकादशी अति उजळी, वीरदेवे प्रकाशी, कृष्ण पाळी नेमना, उपदेशथी खासी; ज्ञानवरणने टाळीने, शुद्धज्ञान प्रकाशे, देव-देवीओ संघनी, भक्ति उजासे.
एकादशी तिथि स्तुति अरस्य प्रव्रज्या नमि-जिनपते-नि-मतुलं, तथा मल्ले-जन्म-व्रत-मपमलं केवलमलम्; वल-कादश्यां सहसिल-सदुद्दाम-महसि, क्षितौ कल्याणानां क्षपति विपदः पंचक-मदः.
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