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मंत्रमांही नवकार ज जाणुं, तारामां जेम चन्द्र वखाणुं,
जलधर जलमां जाणुं. पंखीमांहे जिम उत्तम हंस, कुलमांहे जिम ऋषभनो वंश, नाभि तणो ए अंश;
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क्षमावन्तमां श्री अरिहन्त, तपशूरा मुनिवर महन्त, शत्रुंजय गिरि गुणवन्त..
श्री शत्रुंजय मंडण, ऋषभ जिणंद दयाल; मरुदेवा नंदन, वंदन करूं त्रण काल. ए तीरथ जाणी, पूरव नवाणुं वार; आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार. वीश तीर्थंकर, चडिया इण गिरिराय;
ए तीरथनां गुण, सुर असुरादिक गाय.
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सिद्धाचल तीर्थ स्तुति
पुंडरीक गणधर पाय प्रणमीजे, आदीश्वर जिनचंदाजी; नेम विना त्रेवीश तीर्थंकर, गिरि चढिआ आनंदाजी.
आगम मांहि पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिनंदाजी; चैत्री पूनम दिन देवी चक्केसरी, सौभाग्य द्यो सुखकंदाजी. १ सिद्धाचल तीर्थ स्तुति
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