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ए पावन तीरथ, त्रिभुवन नहीं तस तोले; ए तीरथना गुण, सीमंधर मुख बोले. .... पुंडरीक गिरि महिमा, आगममां परसिद्ध; विमलाचल भेटी, लहीए अविचल रिद्ध. पंचम गति पहोंता, मुनिवर कोडा कोड; इणे तीरथे आवी, कर्म विपाक विछोड. श्री शत्रुजय केरी, अहोनिश रक्षाकारी; श्री आदि जिनेश्वर, आण हृदयमां धारी. श्री संघ विघनहर, कवड यक्ष गणभूर; श्री रवि बुध सागर, संघना संकट चूर..
चैत्री पूनम की चार स्तुति की एक स्तुति चैत्री पूनम विमलाचरे, तप वीरे भाख्युं, तीर्थंकर सर्वे भलुं, मुक्तिफल दाख्युं; सिद्धाचलना ध्यानथी शुद्धज्ञान ने मुक्ति, शासनदेवो सारता, यात्रीओनी भक्ति.
श्री रायण पगलांनी थोय श्री शेजय आदिजिन आव्या, पूर्व नवाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी;
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