SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी; कांकरे कांकरे अनंता सीध्या, एकसो ने आठ गिरिनामजी. नवपद स्तुति वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, गौतम गुणना दरीयाजी; एक दिन आणा वीरनी लइने, राजगृही संचरीआजी. श्रेणिक राजा वंदन आव्या, उलट मनमां आणीजी; पर्षदा आगल चार विराजे, हवे सुणो भवि प्राणीजी. ........१ मानव भव तुमे पुण्ये पाम्या, श्री सिद्धचक्र आराधोजी; अरिहंत सिद्ध सूरि उवज्झाया, साधु देखी गुण वाधोजी. दरशन नाण चारित्र तप कीजे, नवपद ध्यान धरीजेजी; धुर आसोथी करवां आयंबिल, सुख संपदा पामीजेजी.......२ श्रेणिक राय गौतम ने पूछे, स्वामी ए तप केणे कीधोजी?; नव आयंबिल तप विधिशुं करतां, वांछित सुख केणे लीधोजी?. मधुर ध्वनि बोल्या श्री गौतम, सांभलो श्रेणिक राय वयणाजी; रोग गयो ने संपदा पाम्या, श्री श्रीपाल ने मयणाजी.........३ रुमझुम करती पाये नेउर, दीसे देवी रूपालीजी; नाम चक्केसरीने सिद्धाई, आदि वीर जिन वर रखवालीजी. २३२ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy