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आपणो आतम भाव जे, एक चेतनाधार रे; अवर सवि साथ संयोगथी, एह निज परिकर सार रेशांति० ११ प्रभुमुखथी ईम सांभळी, कहे आतमराम रे; ताहरे दरिसणे निस्तों, मुज सिध्यां सवि काम रे शांति० १२ अहो अहो हुं मुजने कहुं, नमो मुज नमो मुज रे; अमितफळ दान दातारनी, जेहने भेट थई तुज रे शांति० १३ शांतिसरूप संक्षेपथी, कह्यो निज-पर रूप रे; आगममांहि विस्तर घणो, कह्यो शांतिजिन भूप रे .शांति० १४ शांतिसरूप ईम भावश्य, धरि शुद्ध प्रणिधान रे; आनंदघन पद पामश्ये, ते लहिश्ये बहु मान रे ....शांति० १५
__ श्री शांतिनाथ स्तवन हम मगन भये प्रभु ध्यान में, बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुणगान में.
हम १ हरिहर ब्रह्मा पुरन्दर की ऋद्धि, आवत नहीं कोउ मान में; चिदानन्द की मोज मची है, समता रस के पान में. ...हम.२ इतने दिन तुम नाही पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में; अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में. हम.३
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