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मुनिसुव्रत स्तुति समकित ने चारित्रथी, मुनिसुव्रत थावे, धातीकर्म विनाशतां, प्रभुता घट पावे; राजयोग चारित्रमां, शुद्ध उपयोग समता, मन वच कायनी गुप्तिथी, परमात्म रमणता.
नमिनाथ स्तुति नमि जिनेश्वर सेवा भक्ति, जगनी सेवा भक्तिजी, निज आतमनी सेवा भक्ति, एक स्वरूपे शक्तिजी; नाम रूपथी भिन्न निजातम, धारी प्रभु जे ध्यावेजी, प्रारब्धे कर्मनो भोगी, तो पण भोगी न थावेजी.
नेमिनाथ स्तुति द्रव्य भावथी नेमि सरखा, बळिया जैनो थावेजी, जैनधर्म प्रसरावे जगमां, शुभपरिणामना दावेजी; शुभ ते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी, शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमां साधेजी... ........१ शुभ परिणामी सम्यग्दृष्टि, शुद्ध भावेने पामेजी, अशुभ कषाया प्रगट्या वारे, देहाध्यासने वामेजी;
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