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प्रतिष्ठित सुत सुंदरु, वाणारसी राय,
वीश लाख पूरव तणुं प्रभुजीनुं आय. धनुष बसें जिन देहडी ए, स्वस्तिक लंछन सार, पद पद्मे जस राजतो, तार तार भव तार.
श्री सुपार्श्वनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन सुपार्श्वनाथ छे सातमा, तीर्थंकर जिनराजा; पासे प्रभु सुपार्श्व तो, आतम जगनो राजा. आतममां प्रभु पास छे, बाहिर मूर्खा शोधे; अंतरमां प्रभु ध्यानथी, ज्ञानी भक्तो बोधे .. द्रव्यभावथी वंदीए ए, ध्याईजे प्रभु पास; एकवार पाम्या पछी, टळे नहीं विश्वास.
श्री चंद्रप्रभस्वामीनुं चैत्यवंदन अनंत चंद्रनी ज्योतिथी, अनंत ज्ञानथी ज्योत; चंद्रप्रभु प्रणमं स्तवं, करता जग उद्योत. असंख्य चंद्रो भानुओ, इन्द्रो जेने ध्याय; परब्रह्म चंद्रप्रभु, जगमां सत्य सुहाय.. शुद्धप्रेमथी वंदतां ए, असंख्यचंद्रनो नाथ; बुद्धिसागर आतमा, टाळे पुद्गल साथ.
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