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श्री पद्मप्रभस्वामी- चैत्यवंदन नवधा भक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा; सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. .. नवधा भक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हठे, स्वयं प्रभु समजाता.. पद्मप्रभुने ध्यावतां ए, पूर्ण समाधि थाय; हृदय पद्ममां प्रकटता, आत्मप्रभुजी जणाय.
__ श्री पद्मप्रभस्वामी, चैत्यवंदन कोसंबीपुर राजियो, धर नरपति ताय, पद्मप्रभ प्रभुतामयी, सुसीमा जस माय. त्रीश लाख पूरवतणूं, जिन आयु पाळी, धनुष अढीसें देहडी, सवि कर्मने टाळी. पद्मलंछन परमेश्वरु ए, जिनपद पद्मनी सेव, पद्मविजय कहे कीजिये, भविजन सहु नितमेव.
श्री सुपार्श्वनाथ भगवाननु चैत्यवंदन श्री सुपार्श्व जिणंद पास, टाळ्यो भव फेरो, पृथ्वी मात उरे जयो, ते नाथ हमेरो.
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