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..सिद्ध.२
कर जोडी सेवक गुणगावे, मोहन गुण मणि माल; भवि. तास शिष्य मुनि हेम कहे छे, जन्म मरण दुःख वार. . भवि.७
नवपद स्तवन सिद्धचक्रने भजीये रे, के भवियण भाव धरी; मद मानने तजीए रे, के कुमति दूर करी. पहेले पदे राजे रे, के अरिहंत श्वेत तनु; बीजे पदे छाजे रे, के सिद्ध प्रगट भj. ............ सिद्ध.१ त्रीजे पदे पीला रे, के आचार्य कहीए; चोथे पदे पाठक रे, के नील वर्ण लहीए................. पांचमे पदे साधु रे, के तप संयम शूरा; श्याम वर्णे सोहे रे, के दर्शन गुणे पुरा................... सिद्ध.३ दर्शन ज्ञान चारित्र रे, के तप संयम शुद्ध वरो; भवियण चित्त आणी रे, के हृदयमां ध्यान धरो. .......सिद्ध.४ सिद्धचक्रने ध्याने रे, के संकट सर्व टले; कहे गौतम वाणी रे, के अमृत पद मले................. सिद्ध.५
नवपद स्तवन चौद पूरवनो सार, मंत्र मांहे नवकार; जपतां जय जय कार, ओ सयरो हृदय धरो नवकार........१
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