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यशोदा साथ परणीने, रह्यो निर्लेप अन्तरथी; थशे क्यारे दशा एवी, म्हने हो वीरनुं शरणुं. जगत उद्धार करवाने, यतिनो धर्म लीधो त्हें; सह्या उपसर्ग समभावे, म्हने हो वीरनुं शरणुं.... जगतना० ६ अलौकिक ध्यान त्हें कीधुं, गया दोषो थया निर्मल; थया सर्वज्ञ उपकारी, म्हने हो वीरनुं शरणुं. घणा उपदेश दीधा त्हें, चतुर्विध संघने स्थाप्यो; त्हने में ओळखी लीधो, म्हने हो वीरनुं शरणुं.... जगतना० ८
अनन्तानन्द लीधो त्हें, जीवन त्हारूं विचारूं हुं; बुद्धयब्धि बाळ हुं त्हारो, शरण त्हारूं शरण त्हारूं. जगतना० ९ श्री महावीर स्वामी स्तवन
(राग-सोरठ)
व्हाला त्रिशलानंदन वीरजिनेश्वर तारजो रे; जाणी बाल तमारो विनतडी अवधारजो रे
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जगतना० ५
जगतना० ७
रमतगमतमां जीवन गाळु, कामक्रोधथी मनडुं बाळं; प्यारा! करूणामृत सिंचनथी, ताप निवारजो रे व्हाला० २ ज्ञान विना हृदये अंधारूं, करशे तुम विण कोण आजवाळं ? ; सुखकर! कामक्रोध विषयादिक, अरि संहारजो रे व्हाला० ३
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व्हाला० १