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श्री कुंथुनाथ भगवान, चैत्यवंदन कुंथुनाथ कामित दीए, गजपुरनो राय; सिरि माता उरे अवतर्यो, शूर नरपति ताय. काया पांत्रीस धनुषनी, लंछन जस छाग; केवलज्ञानादिक गुणो, प्रणमो धरी राग.... सहस पंचाणुं वरस, ए, पाली उत्तम आय; पद्मविजय कहे प्रणमीए, भावे श्री जिनराय.
श्री कुंथुनाथ भगवान, चैत्यवंदन शुद्ध स्वभावे शांतिने, पाम्या कुंथु जिनंद; कुंथुनाथ निज आतमा, समजे नहि मतिमन्द.. मननी गति कुंठित थतां, वैकुंठ मुक्ति पासे; क्रोधादिक दूरे करी, वर्ते हर्षोल्लासे. ......... बाहिर दृष्टि त्यागथी, आतमदृष्टियोगे; कुंथुनाथ ध्यावो सदा, निजना निज उपयोगे. .............३
श्री अरनाथ भगवान, चैत्यवंदन रागद्वेषारि हणी, थया अरिहंत जेह. अर जिनेश्वर वंदतां, कर्म रहे नहीं रेह.
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