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अचिरा उर सर हंस जिम, जिनवर जयकारी; मारी रोग निवारके, कीर्ति विस्तारी.. सोलमा जिनवर प्रणमीये ए, नित ऊठी नमी शीष; सुरनर भूप प्रसन्न मन, नमतां वाधे जगीश.
श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन दर्शन ज्ञान चारित्रथी, साची शांति थावे; शांतिनाथ शांति वर्या, रत्नत्रयी स्वभावे. तिरोभाव निज शांतिनो, अविर्भाव जे थाय; शुद्धात शांति प्रभु, स्वयं मुक्तिपद पाय. बाह्य शांतिनो अंत छे ए, आतम शांति अनंत; अनुभवे जे आत्ममां, प्रभुपद पामे संत.
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श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन विपुल-निर्मल-कीर्ति-भरान्वितो, जयति - निर्जर-नाथ-नमस्कृतः; लघु-विनिर्जित-मोह-धराधिपो जगति यः प्रभु- शान्ति-जिनाधिपः१ विहित शान्त-सुधारस-मज्जनं, निखिल - दुर्जय-दोष-विवर्जितम्; परम-पुण्यवतां भजनीयतां, गतमनन्त - गुणैः सहितं सताम्...२ तम-चिरात्मज-मीश-मधीश्वरं भविक - पद्म - विबोध-दिनेश्वरम्; महिमधाम भजामि जगत्त्रये, वरमनुत्तर- सिद्धि - समृद्धये......३ ३९