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श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन जयतु जिन जगदेक-भानु, काम कश्मल-तम-हरं; दुरित-ओघ विभाव-वर्जितं, नौमि श्री जिन-मंधरं. प्रभु-पाद पद्मे चित्त-लयने, विषय-दोलित निर्भरं; संसार-राग असार-घातिकं, नौमि... .. अति-रोष-वह्नि-मान महीधर, तृष्णा-जलधि-हितकरं; वचनोर्जित-जंतु-बोधकं, नौमि... अज्ञान-तर्जित-रहित-चरणं, परगुणो मे मत्सरं; अरति-अर्दित-चरण-शरणं, नौमि...
........४ गंभीर-वदनं भवतु दिन दिन, देहि मे प्रभु-दर्शनं; भावविजय श्री ददतु मंगलं, नौमि..
.....५ सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन श्री शत्रुजय सिद्ध-क्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे. भाव धरीने जे चढे, तेने भव-पार उतारे. अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय. पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय. .. सूरज-कुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम. नाभिराया-कुल-मंडणो, जिनवर करूं प्रणाम.
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