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प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोईने ठरूं, अरर ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा, माटे प्रभुजी तुमने विनवू, तारजो हवे जिनजीने स्तवं, दीनानाथजी दुःख कापजो, भविक जीवने सुख आपजो. पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउ हुं नित्य ताहरा. ...४६ अंतरना एक कोडियामा, दीप बळे छे झांखो, जीवनना ज्योतिर्धर एने, निशदिन जलतो राखो, ऊंचे ऊंचे उडवा काजे, प्राण चाहे छे पांखो, तमने ओळखं नाथनिरंजन, एवी आपो आंखो. असत्यो मांहेथी, प्रभु परम सत्ये तुं लई जा, ऊंडा अंधारेथी, प्रभु परम तेजे तुं लई जा, महा मृत्युमांथी, अमृत समीपे नाथ लई जा, तुं, हीणो हुँ छु तो, तुज दरशनना दान दई जा. अंतरमा छे एक झंखना, तारा जेवा थवानी, रागी मटीने तारा जेवा वीतरागी बनवानी, विश्वपिता छो बालक हुं छु आप कने शुं मांगुं? मारा आतमने अजवाळी देजो एटलुं मां'............ .......४९
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