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दीक्षा प्रसंगनां गीतो
ओघो छे अणमूलो ओघो छे अणमूलो... एनुं खूब जतन करजो मोंघी छे मुहपत्ति... एनुं रोज रटण करजो... आ वेश आप्यो तमने... अमे एवी श्रद्धाथी उपयोग सदा करजो... तमे पूरी निष्ठाथी आधार लई एनो... धर्माराधन करजो...
ओघो छे आ वेश विरागीनो... एनुं मान घणुं जगमां मा-बाप नमे, तमने पडे राजा पण पगमां आ मान नथी मुजने... एवं अर्थघटन करजो......... ओघो छे आ टुकडा कापडना कदी ढाल बनी रहेशे दावानळ लागे तो दीवाल बनी रहेशे एना ताणावाणामां... तप, सिंचन करजो............. ओघो छे आ पावन वस्त्रो छे तारी कायानुं ढांकण बनी जाये ना जो जो ए मायानुं ढांकण चोख्युं ने झगमगतुं दिलनुं दर्पण करजो... .......... ओघो छे मेलां के धोयेलां लीसां के खरबचडां
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