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विषयो केरी आगने ठारे... शासनरूपी पाणी पापीने पण पुनित करती... वीरनी मधुरी वाणी १रगरगमांही नसनस मांही... वसजो शासन तारुं
जुग जुग सुधी जगहित काजे जीवो आ जिनशासन एना चरणे धरशुं अमे आ तनमन ने नरजीवन शासन केरी ज्योति कापे... पापतणुं अंधारुं....
शासनकेरी भक्ति करतां ... देह भले छूटी जातो मोत मळे शासन खातर तो ... अंगे हरख न मातो जयवंतु जिनशासन पामी... लागे जग आ खारुं
आत्यो दादाने दरबार
आव्यो दादाने दरबार करो भवोदधि पार खरो तुं छे आधार... मोहे तार तार तार .. आत्म गुणोनो भंडार तारा महिमानो नहिपार देख्यो सुंदर देदार... करो पार पार पार. तारी मूर्ति मनोहर हरे मननां विकार
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ओ वीर !
ओ वीर !
ओ वीर!