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श्री अजितनाथ थोय विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरीदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदो, लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो.
श्री संभवनाथ थोय संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता, षट जीवना त्राता, आपता सुखशाता; माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग वाता, जास नामे पलाता.
श्री संभवनाथ स्तुति आत्म स्वभावे संभवतुं ते, संभव जिननी सेवाजी, गुणपर्यायो आविर्भावे थातां पोते देवाजी; अभेदभावे संभव करता ज्ञानानंद स्वभावेजी, निजआतम संभवरूपी छे व्यक्त करे भवी भावेजी.
श्री अभिनंदन स्तुति आत्मानंद प्रगट करी अभिनंदे जेह, अभिनंदन छे आतमा गुणपर्याय गेह;
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