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भिन्न भिन्न मत दर्शन पंथो, निरपेक्षे मिथ्या सदा, सातनयोनी सापेक्षाए, जाणे सम्यक्त्व ज तदा; जैनधर्ममां सर्वे धर्मो, सापेक्षे समाय छे, जैन धर्म सेवे सहु धर्मो, सेव्या देवो गाय छे. .........२ जिनवाणी जाणंतां जाण्युं, सर्वे ए निश्चयने खरो; जग जाण्युं सहु आतम जाणे, एवा निश्चयने धरो; आतमशुद्धि माटे सर्वे, बाह्यांतर उपाय छे, जेने जेथी शुद्धि थाती, तेने ते ज सुहाय छे.... बहिरातमने अंतरआतम, करवो आतमज्ञानथी, अंतरआतमने परमातम, करवो ध्यानना तानथी; अंतरआतम ते परमातम, जाणी प्रभुने सेवता, तेथी जैनो जिनता पामे, स्हाय करंता देवता...... .........४
श्री अजितनाथ स्तुति अजितजिनेन्द्रे अजित थवाने, सम्यग्ज्ञान प्रकाश्युंजी, सापेक्षाए भव्य लोकना, मनमां प्रेमे वास्युंजी; आतमज्ञान सम ज्ञान नहीं को, क्षणमां थावे मुक्तिजी, आतमज्ञानी निर्लेपी थै, कर्म करे सहुयुक्तिथी. ........१
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