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श्री नेमिनाथ स्तवन रहो रहो रे यादव! दो घडीयां, दो चार घडीयां. शिवामात मल्हार नगीने, क्युं चलीए हम विछडीयां? रहो. यादव वंश विभूषण स्वामी!, तुमे आधार छो अडवडीयारहो.१ तो बिन ओरसे नेह न कीनो, और करनकी आखडीयां. रहो. इतने बीच हम छोड न जइए, होत बुराइ लाजडीयां. रहो.२ प्रीतम प्यारे! नेह कर जानां, जे होत हम शिर बांकडियां. रहो. हाथसे हाथ मिलादे सांइ!, फूल बिछाउं सेजडीयां. ... रहो.३ प्रेमके प्याले बहुत मसाले, पीवत मधुरे सेलडीयां. रहो. समुद्र विजय कुल तिलक नेमिकुं,राजुल झरती आंखडीयां.रहो४ राजुल छोर चले गिरनारे, नेम युगल केवल वरीयां. रहो. राजीमती पण दीक्षा लीनी, भावना रंग रसे चडीयां... रहो.५ केवल लई करी मुगति सिधारे, दंपती मोहन वेलडीयां. रहो. श्री शुभ वीर अचल भई जोडी, मोहराय शिर लाकडीयां. ... रहो.६
श्री नेमिनाथ स्तवन अरज सुणो हो नेम नगीना, राजुलनां भरथार, भजलो-भजलो हो जगनां प्राणी, भजो सदा किरतार.......१
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