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ध्रुवता ज्ञेयना द्रव्यपणे नित्यता खरी, उत्पत्ति-व्यय ज्ञेयअनित्यता अनुसरी. जीवद्रव्य एकव्यक्ति अनादि-अनंत छे, गुण-पर्यवआधार चेतनजी सन्त छे; बुद्धिसागर जिनवरवाणी सद्हे, समकित-श्रद्धायोगे अपेक्षा सहु लहे....
श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन श्री सुपास जिन वंदीए, सुख संपत्तिनो हेतु-ललना, शांत सुधारस जलनिधि, भवसागरमां हे सेतु-ललना. श्री० १ सात महाभय टाळतो, सप्तम जिनवर देव ललना, सावधान मनसा करी, धारो जिनपद सेव ललना...... श्री० २ शिवशंकर जगदीश्वरु, चिदानंद भगवान ललना, जिन अरिहा तीर्थंकरु, ज्योति स्वरूप असमान ललना.श्री० ३ अलख निरंजन वच्छलु, सकळ जंतु विसराम ललना, अभयदान दाता सदा, पूरण आतमराम ललना........ श्री० ४ वीतराग मद कल्पना, रति अरति भय सोग ललना, निद्रा-तंद्रा दुरूदशा, रहित अबाधित योग ललना..... श्री० ५
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