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श्री विमलनाथ भगवान, चैत्यवंदन आत्मिक सिद्धि आठ जे, आठ वसुना भोगी; आत्मवसु प्रगटावीने, निर्मल थया अयोगी...... ........ करी विमल निज आतमा, थया विमल जिनराज; प्रभु पेठे निज विमलता, करवी ए छे काज. आत्मविमलता जे करे ए, स्वयं विमल ते थाय; विमल प्रभु आलंबने, विमलपणुं प्रगटाय...
श्री अनंतनाथ भगवान, चैत्यवंदन विमलात्मा करीने प्रभु, थया अनंत जिनेश; अनंत ज्योतिर्मय विभु, नहीं राग ने द्वेष. अनंत जीवन ज्ञानमय, आनंद सहज स्वभावे; द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भावथी सत्य सुहावे. अनंत रत्नत्रयी वर्या ए, अनंत जिनवर देव; बुद्धिसागर भावथी, करवी भक्ति सेव.
श्री अनंतनाथ भगवाननु चैत्यवंदन अनंत अनंत गुण आगरु, अयोध्या वासी; सिंहसेन नृप नंदनो, थयो पाप निकासी.
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