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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्त गुणपर्यायपात्र तुं, व्यक्ति एवंभूत साररे; संग्रहनय परिपूर्णता, ध्याता ते व्यक्तिथी धाररे.....अनन्त० २ उपशमभाव क्षयोपशमथी, साध्यनी सिद्धि करायरे; धर्म निज वस्तुस्वभावमां, स्थिर उपयोग सुहायरे..अनन्त० ३ ज्ञानदर्शनचरण-गुणविना, व्यवहार कुलआचाररे; साध्यलक्ष्ये शुद्ध चेतना, जाणवो शुद्धव्यवहाररे..... अनन्त० ४ द्रव्यक्षेत्र काल भावथी, पर्याय द्रव्य अनन्तरे; शुद्ध आलंबन आदरी, व्यक्तिथी थाय भदंतरे.......अनन्त० ५ स्वकीय द्रव्यादिकभावथी, अनंतता अस्तिपणे साररे; परद्रव्यादिक अस्तिनी, नास्तिता अनन्त विचाररे. .अनन्त०६ वीर्य अनन्त सार्मथ्यथी, उत्पाद-व्यय प्रतिद्रव्यरे; छती पर्यायथी ध्रुवता, समय समयमांही भव्यरे..... अनन्त० ७ धर्म अनन्तनो स्वामी तुं, ध्यानमां ध्येयस्वरूपरे; बुद्धिसागर निज द्रव्यनी, शुद्धि ते जय! जिनभूपरे. अनन्त० ८ श्री धर्मनाथ स्तवन धर्मजिनेश्वर वंदुं भावथी, वस्तुधर्मदातार; वस्तुस्वभाव ते धर्म जणावता, षड्द्रव्योमांही सार. जगतमां०१ १०८ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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