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में परभवे नथी पुण्य कीधुं ने नथी करतो हजी, तो आवता भवमां कहो ! क्यांथी थशे हे नाथजी, भूत भाविने सांप्रत त्रणे भव नाथ ! हुं हारी गयो, स्वामी! त्रिशंकु जेम हुं आकाशमां लटकी रह्यो . अथवा नकामुं आप पासे नाथ! शुं! बकवुं घणुं, हे देवताना पूज्य! आ चरित्र मुज पोतातणुं, जाणो स्वरूप ण लोकनुं तो माहरूं शुं मात्र आ ज्यां क्रोडनो हिसाब नहीं त्यां पाइनी तो वात क्यां? त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो उद्धारनारो प्रभु ! म्हाराथी नही अन्य पात्र जगमां जोतां जडे हे विभु ! मुक्ति मंगळ स्थान! तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग् रत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये गणी.
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