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शुचि मातृभक्तिने साधी, निवारी व्याधि उपाधि,
'हेमेन्द्र' करो भवपार ................... त्रिशला...७ (आ. श्री अजितसागरसूरि के शिष्य हेमेन्द्रसागरजी कृत)
श्री महावीरस्वामी हालरर्दू माता त्रिशला झुलावे पुत्र पारणे, गावे हालो हालो हालरवानां गीत; सोना रूपा ने वली रत्ने जडियुं पारj, रेशम दोरी घुघरी वागे छुम छुम रीत; हालो हालो हालो हालो मारा नन्दने रे.. जिनजी पास प्रभुथी वरस अढीसें अंतरे रे,
__ होशे चोवीसमो तीर्थंकर जिन परिमाण; केशी स्वामी मुखथी एहवी वाणी सांभली रे,
____ साची साची हुई ते मारे अमृत वाण. हालो.२ चौदे सपने होवे चक्री के जिनराज,
वीत्या बारे चक्री नहीं हवे चक्रीराज; जिनजी पास प्रभुना श्री केशी गणधार,
तेहने वचने जाण्या चोवीसमा जिनराज. मारी कूखे आव्या त्रण भुवन शिरताज,
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