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नाभि : रत्नत्रयी गुण उजळी, सकल सुगुण विश्राम, नाभि कमळनी पूजना, करतां अविचल धाम. ... ........९ उपसंहार : उपदेशक नव तत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद, पूजो बहुविध रागथी, कहे शुभवीर मुणींद. .
पुष्प पूजाना दोहा सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप. सुमजंतु भव्य ज परे, करीये समकित छाप.
धूप पूजाना दोहा ध्यान घटा प्रगटावीये, वाम नयन जिन धूप. मिच्छत दुर्गन्ध दूर टले, प्रगटे आत्म स्वरूप. .........१ अमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ मन-मान्या मोहनजी; अमे धूप-घटा अनुसरीए रे, ओ मन... नहीं कोइ तमारी तोले रे, ओ मन... प्रभु अंते छे शरण तमारुं रे, ओ मन.
दीपक पूजाना दोहा द्रव्य दीप सु-विवेकथी, करतां दुःख होय फोक. भाव प्रदीप प्रगट हुए, भासित लोका-लोक.......
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