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प्रभुजीने नव अंगे पूजा करवाना दुहा अंगूठे : जलभरी संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत, ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत. ढींचणे : जानुबळे काउसग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश, खडा खडा केवळ लघु, पूजो जानु नरेश. कांडे : लोकांतिक वचने करी, वरस्यां वरसीदान, । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान.... ......३ खभे : मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत, भुजा बले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत..... मस्तके : सिद्धशिला गुण ऊजळी, लोकांते भगवंत, वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत. .........५ कपाळे : तीर्थंकर पद पुन्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत, त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत. कंठे : सोळ पहोर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल, मधुर ध्वनि सुरनर सुणे, तिण गळे तिलक अमूल. हृदये : हृदय कमल उपशम बळे, बाळ्या राग ने रोष, हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष.
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