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श्री ऋषभदेव स्तवन
जग जीवन जग वालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे;
जग. २
मुख दीठे सुख ऊपजे, दरिशन अतिहि आनंद लाल रे. जग. १ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाल लाल रे; वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिहि रसाल लाल रे.. लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे; रेखा कर चरणादिके, अभ्यन्तर नहि पार लाल रे..... जग.३ इन्द्र चन्द्र रवि गिरितणा, गुण लई घडियुं अंग लाल रे; भाग्य किहां थकी आवियुं ?, अचरिज एह उतंग लाल रे. गुण सघला अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे; वाचक यश विजये थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे. श्री ऋषभदेव स्तवन
जग . ४
जग. ५
. तुम.१
तुम दरसण भले पायो, प्रथम जिन तुम.; नाभि नरेसर नंदन निरुपम, माता मरुदेवा जायो. आज अमीरस जलधर वूठ्यो, मानुं गंगाजले नाह्यो. सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनोपम, ते सवि आज में पायो. तुम . २ युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो. प्रभु तुज शासन वासन समकित अंतर वैरी हठायो .....
.. तुम . ३
७३
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