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आत्मज्ञान ने ध्यानथी, करो आत्मनी शुद्धि, शुद्धातम चंद्रप्रभु, थातां आनंद ऋद्धि.
चंद्रप्रभ भगवाननी थोय सेवे सुर वृंदा, जास चरणारविंदा, अट्ठम जिन चंदा, चंदवणे सोहंदा; महसेन नृप नंदा, कापता दुःख दंदा, लंछन मिष चंदा, पाय मानुं सेविंदा.
सुविधिनाथ भगवाननी थोय नरदेव भाव देवो, जेहनी सारे सेवो, जेह देवाधिदेवो, सार जगमां ज्युं मेवो; जोतां जग एहवो, देव दीठो न तेहवो, 'सुविधि' जिन जेहवो, मोक्ष दे ततखेवो.
सुविधिनाथ स्तुति आत्मिक शुद्धिनी सुविधि, द्रव्यभावथी साची, बाह्यांतर किरिया भली, स्वाधिकारे राची; करतां चिदानंद परिणति, एक सुविधि सोहे, त्रण जगतना लोकाने, मन सुविधि मोहे.
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