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सुरवर मुनिवर सौ कोई समरे नाम तमारु हैये तारा नामे पापी जीवो पण पावन थई जाये मारा हैये वसे (३) दादा तारु नाम ...........तन, मन, धन...
आंख मारी उघडे त्यां आंख मारी उघडे त्यां शंखेश्वर देखु मंदिरमां बेठा मारा पारसनाथ देखु आदिनाथ देखु तो मन हरखातु। धन्य धन्य जीवन मारु कृपा एनी लेखु अंतरनी आंखोथी दरिशन करतां नयणा अमारा निशदिन ठरतां तारी रे मूरतीये मारु मन ललचाणुं ..............धन्य धन्य... नवण करावीने अंतर पखाळू केशर चढावी मारा कर्मोने बाळु चंदन चढावी मनने शीतल बनावु . ..धन्य धन्य... सोना रूपाना फूलडे वधावू अंतरथी हुं तारी आरती उतारु भवोभव मारे शरणु तमारु
...धन्य धन्य...
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