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जलपंकजवत् समकितरेलाल, निर्लेपी कर्तव्यरे हुंवारीलाल; गुरूश्रद्धा-भक्तिवडेरेलाल, श्रवणादिकथी भव्यरे हुंवारीलाल. शुद्धातम निश्चय थतांरेलाल, अनुभव आनंद थायरे हुंवारीलाल बुद्धिसागर समकितरेलाल, सम्यग् ज्ञाने सुहायरे हुंवारीलाल .
पंचमी तिथि स्तवन
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. बीज०८
. बीज० ९
पांचमे ज्ञान आराधना करतां, ज्ञानावरण पलायरे;
मति श्रुत अवधि ने मनपर्यव, केवल प्रगट सुहायरे. पांचमे० १
चक्षु अचक्षु अवधि ने केवल - दर्शन प्रगटी सुहायरे; मति श्रुतनुं अज्ञान टळे ने, विभंग झट विणसायरे. पांचमे० २ मति अठ्ठावीश त्रणसें चालीस - भेदे घट प्रगटाय रे; चौद वीस भेदे श्रुतज्ञानी, केवली सरखो थायरे.... पांचमे० ३ अवधिज्ञान असंख्य प्रकारे, मनपर्यव बे भेदरे; केवलज्ञानमां भेद नबीजो, प्रगटे फळती उमेदरे.....पांचमे० ४ गुरुगमथी मति-श्रुत बे प्रगटे, आत्मानुभव थायरे; बुद्धिसागर गुरुनी सेवा, करतां ज्ञान सुहायरे..
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पांचमे० ५