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प्रभु दान संवत्सरी आपे रे, जगनां दारिद्र दुःख कापे रे;
भव्यत्व पणे तस स्थापे.....मल्लि.३ सुरपति सघला मली आवे रे, मणि रयण सोवन वरसावे रे;
प्रभु चरणे शीश नमावे....मल्लि.४ तीर्थोदक कुंभा लावे रे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे;
सुरपति भगते नवरावे. .मल्लि.५ वस्त्राभरणे शणगारे रे, फूलमाला हृदय पर धारे रे;
___ दुःखडां इंद्राणी उवारे. .मल्लि.६ मल्या सुर नर कोडा कोडी रे, प्रभु आगे रह्या कर जोडी रे;
__ करे भक्ति युक्ति मद मोडी..मल्लि.७ मृगशिर शुदिनी अजुआली रे, एकादशी गुणनी आली रे;
___ वर्या संयम वधु लटकाली रे. मल्लि.८ दीक्षा कल्याणक एह रे, गातां दुःख न रहे रेह रे;
लहे रूप विजय जस नेह...मल्लि.९
एकादशी- स्तवन महावीर जिनवरे उपदिश्युं, एकादशी तप बेशरे; कृष्णे आराधन आदर्यु, टाळवा राग ने द्वेष रे.... महावीर० १
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