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प्राक्कथन ]
हिन्दी भाषाटीका सहित
(२५)
७- स्त्रीवेद – जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ भोग करने की अभिलाषा होती है वह स्त्री कहा जाता है। अभिलाषा में दृष्टान्त करीषाग्नि का है । करीप सूखे गोबर को कहते हैं, उस की आग जैसे २ जलाई जाए वैसे २ बढ़ती रहती है । इसी प्रकार पुरुष के करस्पर्शादि व्यापार से स्त्री की अभिलापा बढ़ती जाती है ।
पुरुषवेद – जिस कर्म के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ भोग करने की अभिलाषा होती है, वह कर्म पुरुषवेद कहलाता है । अभिलाषा में दृष्टान्त तृणाग्नि का है। तृण की आग शीघ्र ही जलती है और शीघ्र ही बुझती है, इसी भाँति पुरुष को अभिलाषा शीघ्र होती है और स्त्रीसेवन के बाद शीघ्र ही शान्त हो जाती है ।
६ - नपुंसक वेद - जिस कर्म के उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के साथ भोग करने की इच्छा होती है, वह नपुंसक वेद कर्म कहलाता है। अभिलाषा में दृष्टान्त नगरदाह का है। नगर में आग लगे तो बहुत दिनों में नगर को जलाती है और उस आग को बुझाने में भी बहुत दिन लगते हैं, इसी प्रकार नपुंसकवेद के उदय से उत्पन्न हुई अभिलाषा चिरकाल तक निवृत्त नहीं होती और विषयसेवन से तृप्ति भी नहीं हो पाती ।
(५) - आयुष्कर्म के ४ भेद होते हैं । जिस कर्म के उदय से देव, मनुष्य, तिर्यञ्च, नरक इन गतियों में जीवन को व्यतीत करना पड़ता है, वह अनुक्रम से १ - देवायुष्य, २ - मनुष्यायुष्य, ३–तिर्यञ्चायुष्य और ४-नरकायुष्य कर्म कहलाता है ।
(६) - नामकर्म के १०३ भेद होते हैं । इन का सक्षिप्त विवरण निम्नोक्त है—
१ -- नरकगतिनामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी अवस्था प्राप्त हो, जिस से वह नारक कहलाता है । उस कर्म को नरकगतिनामकर्म कहते हैं ।
२- तिर्यञ्चगतिनामकर्म- - इस कर्म के उदय से जीव तिर्य कहलाता है ।
३ - मनुष्यगतिनामकर्म - इस कर्म के उदय से जीव मनुष्यपर्याय को प्राप्त करता है । ४ देवगति नामकर्म- - इस कर्म के उदय से जीव देव अवस्था को प्राप्त करता है । ५_एकेन्द्रियजातिनामकर्म- - इस कर्म के उदय से जीव को केवल एक त्वगिन्द्रिय की
प्राप्ति होती है ।
६_द्वन्द्रियजातिनामकर्म- - इस कर्म के उदय से जीव को त्वचा और जिह्वा ये दो इन्द्रियें प्राप्त होती हैं ।
७_त्रीन्द्रियजातिनामकर्म — इस कर्म के उदय से जीव को त्वचा, जिह्वा और नासिका ये तीन इन्द्रिये प्राप्त होती हैं ।
८_ चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म- -- इस कर्म के उदय से जीव को त्वचा, जिह्वा, नासिका और नेत्र ये चार इन्द्रियें प्राप्त होती हैं ।
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