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सं विसर्ग एकारांते झं वं व्हः पः सुधाक्षरैः सत्यं च गुरु मुद्राग्रे न्यस्तै र मृत वणिर्षिः
अथवा गुरू मुद्रा के आगे अमृत मंत्र को वर्षाने वाले सत्य स्वरूप सुधा अक्षर झ यं व्ह पः हः इन सुधा अक्षरों से व्यास करे ।
ललाट नल निक्षिप्त सुधा बीच चतु विधात प्रस्त्रवद्वारिधाराभिरात्मानां स्नापये त्क्रमात
॥६॥
अथवा ललाट (मस्तक) के तटों पर स्थापित किये हुवे सुधा बीजा क्षरों को चारों तरफ से झरती हुई जल धारा से आत्मा को स्नान करावे ऐसा ध्यान करे।
गुरू मुद्राग्र निक्षिप्तं पंच ब्रह्माक्षरा मृतैः स्नायादमृत मंत्रेण ध्यायेत् शुद्ध वपुः स्थितं
असि आउसा पंच ब्रह्मे अक्षरानि वा पंच गुरू मुद्राग्र निक्षिप्त पंच ब्रह्म अक्षरानि ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः तान्ये वा मृतानि तैः
॥ ५॥
अभिषंच्या स्वमात्मानं ध्यायेत्
उज्वलतेजसं एवं त्रिधा विशुद्धः सन् विदध्याते सकली क्रियां
गुरु मुद्रा करके अग्रभाग में न्यास किये हुवे उन पांच ब्रह्माक्षरों से स्नान करे, और अमृत मंत्र से अभिमंत्रित करके अपने शरीर को शुद्ध जानकर अपनी शुद्ध आत्मा को ध्यावे ।
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केश मूले ललाटे क्ष्णोः श्रुत्यो नसा पुटद्वये युग्मे गंडोष्ट दंतस्य मूर्व न्यासे न्यसेत् स्वरान्
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इस प्रकार स्नान कराते हुए अपने आपको बड़ा भारी उज्वल तेज बाला हूं ऐसा ध्यान करे इस प्रकार तीन बार विशुद्ध होकर सकली करण क्रिया करे ।
॥ ९ ॥
विन्यस्य विशंतौ हस्त पाद संधिषु पार्श्वयोः पृष्टे नाभौ हृदि स्पशर्नित्यांदीन् धातषु हं हादि
॥ १० ॥
सिर में ॐ केशों के मूल में अ ललाट में आ आंखों में इ ई कानों उ ऊ नाक में ऋ ऋ वाणी समेत गालों में लृ लृ दांतों में ए ऐ होठों में ओ औ जिव्हा में अं कंठ में अः की स्थापना करे भुजाओ
में कं खं गं घं डं दोनों कोखो में टं ठं डं ढं ण पीठ में तं थं दं धं नं नाभि में पं फं बं भं मं हृदय
में चं छं जं झं ञं और सातों धातुओं में यं रं लं वं शं षं सं
やらせちゃ
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