Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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उपेक्षा नहीं की जा सकती है । जब तक कविका वास्तविक नाम किसी सबल प्रमाणके आधार पर कोई दूसरा सिद्ध नहीं होता, तब तक ओडयदेव मान लेना तर्कसंगत ही है । निवासस्थान
afa बादसिंह
वासस्थान के सम्बन्ध में जो अभी एक विवाद है, पण्डित के० भुजवली शास्त्री' इन्हें तमिल या द्रविड प्रान्तका निवासी मानते हैं। वी० शेष गिरि रावने कलिंग (तेलुगु) के गंजाम जिलेके आस-पासका निवासी बताया है । गाम जिला मद्रासके उत्तर में है और अब उड़ीसा में सम्मिलित कर दिया गया है । यहांवर ओडेय और गोडेय दो जातियाँ निवास करती हैं । सम्भवतः वादसिंह ओडेय जातिके रहे होंगे। गञ्जाम जिलेमें प्रचलित लोक कथाओं में जीवन्वरचरित आज भी उपलब्ध होता है। तमिल भाषामें जो लोक कथाएँ प्रचलित हैं, उनमें जीवन्धरको कथा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। तमिल भाषा के जीवकचिन्तामणि - काव्य के कर्त्ता तिरुत्तक्कदेव नामक कवि हैं, जिनका निवासस्थान तमिलनाड है । अत: हमें श्री शेषगिरि रावका मत अधिक समीचीन प्रतीत होता है । तञ्जीरमें गद्यचिन्तामणिको पाण्डुलिपियोंका प्राप्त होना भो इस बातको ओर संकेत करता है कि कविका निवास तमिलनाडमें या उसके आस-पास किसी स्थानमें होना चाहिये ।
गुरु
ओडयदेव या वादीर्भासने गद्यचिन्तामणिके प्रारम्भमें अपने गुरुका नाम पुष्पसेन लिखा है और बताया है कि गुरुके प्रसादसे ही उन्हें वादीभसिंहता और मुनिपुंगवता प्राप्त हुई । कविने गद्यचिन्तामणिके मंगलवाक्योंमें अपने गुरुका स्मरण निम्न प्रकार किया है
श्रीपुष्यसेनमुनिनाथ इति प्रतीतो दिव्यो मतुम सदा हृदि संभिदध्यात् । यच्छक्तितः प्रकृतिमूढमतिर्जनोऽपि वादीभसिंहमुनिपुङ्गवतामुपैति ॥
इससे स्पष्ट है कि पुष्पसेन कविके काव्यगुरु ही नहीं थे, अपितु वे विद्या और दीक्षा गुरु भी थे ।
समय - निर्णय
बादीभसिंहके समय निर्णयके सम्बन्ध में विद्वानोंमें पर्याप्त मतभेद है। अभी
१. जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ६, किरण २, ०७८-८७ ।
२. वहीं, भाग ८, किरण २, पृ० ११७ ।
३. गद्य चिन्तामणि, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, १०६ ।
२६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा