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वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन-परिचय
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वाले पमुख स्वामीने योग- शास्त्रका ग्रच्छा ज्ञान प्राप्त किया था । वैसे ही प्रायकि मारय्य कर्मका मर्म समझाते हुए फिरता था । इसका अर्थ कोई यह न करे कि वचनकार वैरागी थे, संन्यासी थे । साक्षात्कार और प्राध्यात्मिक साधनाका प्रचार करते हुए घूमते थे । वे प्रचार-वीर नहीं थे । वे सब संसारी थे । अपने-अपने पेटके उद्योग में लगे हुए थे । सद्गृहस्थ थे । उन्होंने : अपने नामके आगे अपने उद्योगका नाम जोड़ा है । जैसे श्रंविगर चौडय्य, हडपट्टप्पण्ण, मोलिगये मारय्य' आादि । श्री बसवेश्वर स्वयं किरानी थे । बादको मंत्री बने और अंतिम समय तक अपना कर्तव्य कर्म करते रहे । सकलेश मादरस राजा थे । उन्होंने अपने जीवन में इह-पर, श्रेय और प्रेय, भुक्ति-मुक्ति इन दोनों का समन्वय साधकर दिखाया है । इन वचनकारोंके लिए कोई खास उद्योग-व्यवसाय होना चाहिए, ऐसा कोई बंधन नहीं था । यदि कोई बंधन था तो यही था कि जो भी उद्योग-व्यवसाय वे करें वह प्रामाणिकताके साथ करें । उसमें वेईमानी न हो । धोखादेही न हो । ग्रनीति न हो । उनकी दृष्टि से समाज के हितकी भावनासे किया जानेवाला प्रत्येक व्यवसाय पवित्र है । किसीउद्योग-व्यवसाय के कारण मानी जानेवाली श्रेष्ठता-नीचता भ्रामक है । वह कृत्रिम है । कोई भी व्यवसाय उनके ग्रात्मविकास के मार्ग में बंधनकारक नहीं हुआ । किसी भी व्यवसायने उनकी मोक्षकी साधनामें रुकावट पैदा नहीं की । क्योंकि वे मानते थे यह सब भगवानकी पूजा ही है । ग्रपना-अपना व्यवसाय करते हुए जो कुछ मिलता था वह सब भगवान के चरणों में अर्पण करते थे । इसे लिंगार्पण कहते थे । और जो कुछ ग्रपने लिए लेते थे 'प्रसाद ग्रहण' कह कर लेते थे । जो कोई भी अपने घर पर प्राता था 'वही ईश्वरका रूप' मानकर उसका ग्रादर-सत्कार करते । यह सब उनके ग्राचार धर्मका अंग था । उनकी नीतिमत्ता प्रत्यंत उच्च प्रकृतिकी थी । चरित्र संशयातीत था । करनी और कथनी में मेल ही नहीं था, वे दोनों एकरूप थे । वे कहते थे जैसे अनुभव किया वैसा कहना शील है, जैसा कहा वैसा चलना शील है । वे कट्टर अहिंसावादी थे । पूर्णतः निरामिषभोजी थे । देवी-देवताओं के नामपर किये जानेवाले - बलिदान के भी विरोधी थे । उनका जीवन अंतर-बाहर शुद्ध था । उनका तत्वज्ञान स्पष्ट और तेजस्वी था । आचार-विचार निर्मल थे । उनके कार्य सेवा - म थे । जीवन-पद्धति सर्वेषाम् ग्रविरोधी थी । इसलिए उनके वचनोंमें सामर्थ्य थी । वल था । शक्ति थी । इसीके बल-बूते पर वे सदियों तक लाखों लोगोंके - कंठके भूषरण वनकर करोड़ों लोगोंके जीवनका पथप्रालोकित करते रह सकने में समर्थ रहे ।
१. नाव खेनेवाला चौडय्या, २. नाई अप्पण, ३. लकड़ी बेचनेवाला मारैय ।