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वचन-साहित्य-परिचय भूल कर विश्वात्मामें विलीन होने के आनंदसे बढ़ कर दूसरा कोई आनंद है ही नहीं ।”
अन्य अनेक धर्मोकी तरह इस्लाम धर्म में भी अब तक कई अनुभावी हो गये हैं । उसमें सूफी फकीर प्रसिद्ध हैं । सूफियोंमें सादी हाफिज, जामि, उमर खय्याम आदि प्रसिद्ध हैं । यह सब ग्यारहवीं सदीसे सोलहवीं सदी तक हो गये हैं । औरंगजेबके कालमें सरमद नामका एक फकीर था । गुस्सेमें आकर औरंगजेबने उसको मरवाया । मरते समय उसने हंसते हुए कहा, "मेरे यारोंने मजाकसे मेरी गर्दन उड़ाई । इससे मेरे दिमागमें जो सड़ियल खयालात जमा हुए थे वह भी खतम हो गये !!" और वह खुशी-खुशी कातिलोंके सामने सिर झुकाकर वैठ गया। इन सूफियोंके चरित्र बड़े उज्ज्वल हैं। किंतु यहां उनके चरित्र नहीं देखने हैं। उनके साक्षात्कारके अनुभव देखने हैं । इस विषयमें उमर खैयाम कहते हैं, "उस परम तेजसे अपना मन-भरा हुआ मैंने देखा। अहा ! उस प्रकाशनेवाले प्रकाशसे उसका सव रहस्य मैंने देखा। तोभी क्या ? ज़रा सोचकर देखा तो मैं कुछ भी नहीं जानता।" उसी प्रकार वेदिल नामका एक फकीर बड़े सोचसंकोच से 'रुक-रुककर' कहता है, "मैंने रुक-रुककर एक बात कही 'मैंने उसको देखा !' किंतु मैंने उसको जाना ? मैं नहीं जानता।" आत्यंतिक त्यागसे ही साक्षात्कार संभव है यह कहते समय वही बेदिल कहता है, 'जब मैं घर-बार . छोड़कर निकला तव जहां-तहां पृथ्वीसे आकाश तक प्रकाश फैला हुआ देखा। उस दिव्य दृश्यको देखनेकी आशा हो तो तू भी आ ! अपना सब कुछ त्यागकर । उस दिव्य प्रकाश में तू भी नहा लें !" इस्लाम धर्म में मध्यरात्रिके बाद तीसरे प्रहर जो प्रार्थना की जाती है उसको अत्यंत महत्व दिया जाता है । हाफीजने उसी समयकी प्रार्थनामें हुए साक्षात्कारका वर्णन किया है—"मध्यरात्रि वीतनेके बाद मुझे दुःखसे मुक्ति मिली । उस अंधकारमें किसीने मेरे हाथमें अमृत-पात्र दिया । मेरे सत्यवादी अंतःकरणको वह अमृत मिला। उसके तेजमें मैं वेहोश हो गया। वह कैसा शुभ प्रसंग था ? उसी दिन मुझे मुक्ति-पत्र मिल गया ।".." उसी दिन मुझे अमृतान्न मिल गया। तबसे मैं मौतके भयसे मुक्त हो गया। प्रेम-मंडलके मध्य विदुको मैं स्पष्ट देख रहा हूं। कैसी है वह सुगंध ? मैं रोज रातके समय यह भाग्य पाता हूं। नंदन वनका सुख-सौभाग्य, कल्पवृक्षकी छाया, अप्सरानोंका विलास मंदिर, इन सबसे वह सुख अनंतगुना अधिक है । मैं परमात्माका प्रतिबिंब है। यह मैं प्रत्यक्ष देखता हूं। इसका मैं अनुभव करता हूं। मन्सूरकी तरह मुझे फांसी पर झूलना पड़ा तो भी मैं अनलहक कहना नहीं छोडूंगा !" जलालुद्दीन नामके और एक फकीरने कहा है, "अात्मानुभवके उस अनंत सागरमें शब्द-मुग्धताही एक आहार है ।