Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 303
________________ २६० वचन-साहित्य-परिचय टिप्पणीः-वचनकार प्रणव पंचाक्षरीको वर्णात्मक ,परमात्मा मानते हैं। इस वचनमें मंत्रका महत्त्व भली भांति दर्शाया है। अव आत्म-विकासमें गुरु जंगम तथा लिंगका स्थान दिखानेवाले वचन देखें। (५१०) अजी ! मैं उसीको सद्गुरु कहूंगा जिसको क्रियाचारमें आसक्ति है, ज्ञानाचारमें निष्ठा रखनेवालेको ही सच्चिदानंद लिंग कहूंगा । भावाचारमें प्रीति करनेवालेको हो जंगम कहूंगा, इस त्रिविध प्राचारमें निरत ही सत्य शरण है, तो आचार, सन्मार्ग, स्थित गुरु लिंग जंगम शरण ही गुहेश्वरलिंगका मोक्ष मंदिर है चन्नबसवण्णा । (५११) अपने आपको जान लिया तो श्राप ही गुरु है, स्वयं लिंग है, अपनी निष्पत्ति ही जंगम है यह त्रिविध एक होते ही स्वयं कामेश्वर लिंग है। (५१२) ज्योतिका स्पर्श होते ही स्वयं ज्योति होनेकी भांति, सागरका स्पर्श करनेवाली नदियोंका स्वयं सागर होनेके भांति, प्रसादको स्पर्श करते ही . प्रत्येक वस्तु प्रसाद बन जाती है रे ! यह त्रिविध एक हुआ कि आगे कुछ है ही नहीं । लिंगको स्पर्श करनेवाला स्वयं लिंग हो जाता है सकलेश्वर देव तुझे स्पर्श करनेवाले सव तू ही हो जाएंगे। . (५१३) लिंगमुख जाने हुएको अंग कुछ नहीं है। जंगममुख जाने हुएको संसार कुछ नहीं, प्रसादमुख जाने हुएको इहपर ऐसा कुछ नहीं; इस विविध अद्वैतानुभव किए हुएके लिए आगे कुछ रहा ही नहीं । इस त्रिविधका स्थिति-स्थान ही श्रुति, स्मृति, पुराण इतिहासका ज्ञान है कूडलचन्नसंगैया यह तुम्हारे शरण ही जानें। (५१४) अंगसे लिंगको सुख, लिंगसे अंगको सुख, उस अंग लिंग संग सुखमें परम सुख है देख; उस अंग-लिंग समरसक्यका सुख कूडलचन्नसंगैया . तुम्हारी शरण गये हुए महालिंगक्य के अतिरिक्त और कौन जानता है ? टिप्पणी:-वीर शैवाचारका सार सर्वस्व कहीं एक स्थानपर देखना हो । तो अक्कमहादेवीका किया हुआ श्री बसवेश्वरका वर्णन देखना चाहिए। अक्क महादेवीने लिखा है कि श्री वसवेश्वरमें श्रेष्ठ शिव प्राचारके सब गुण विद्यमान थे। (५१५) ...."हमारे वसवण्णने जगतके हितके लिए मृत्युलोकमें अवतरित झेकरके वीर शैव मार्ग निरूपित करनेके लिए बावन गुणोंको (प्राचारोंको) विकसित किया है । वह गुरुकारुग्यवेध, विभूति रुद्राक्ष धारक, प्रणव पंचाक्षरी भाषा समवेत, लिगांग संबंधी नित्य-लिंगार्चक, सर्पिणमें दक्ष, पादोदक' प्रसाद सेवक, गुरुभक्तिसंपन्न, एकलिंगनिष्ठ, चरलिंग लोलुप, शरण संगमेश्वर, त्रिकरण शुद्ध, त्रिविध लिंगांग संबंधी, अन्य देवताओंका स्मरण भी न करनेवाला,

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