Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 306
________________ प्रकीर्ण २६३ (५२०) सद्भावियोंको तू ही एकाकार लोकाकार होकर दीखता है । भाव भ्रमितोंको तेरा एकाकार ही झूठ और लोकाकार ही सच सा लगता है । और एकाकार, लोकाकार तथा सर्वाकार होकर दीखता है तू निर्भावियोंको सौराष्ट्र सोमेश्वरा तू सत्याकार होकर रह रे बाबा भावैक्य महात्माओंके लिए । टिप्पणी: कामनायुक्त स्त्रीसंग घातक है । ( ५२१ ) दासियोंका संग कीचड़ भरा पानी ढोनेका-सा है। वेश्याओंका संग जूठन खानेका सा है । परस्त्रीका संग पंच महापातकों का बोझ है । इस प्रकारका त्रिविध आचरणवाला नास्तिक है, भक्त कदापि नहीं । भक्तिके प्रभाव में मुक्ति नहीं हमारे कूडल संगैयके घर | टिप्पणी:- ग्रनुभाव ही सबसे महत्त्वका है । ( ५२२ ) भक्ति के लिए अनुभाव ही मूल है रे ! भक्ति के लिए अनुभाव ही प्राचार है । भक्ति के लिए अनुभाव ही सकलैश्वर्य शृंगार है । वीर शैव आचार संपंन्न भक्त महानुभावों के लिए अनुभाव ही ज्ञानका परिचायक है । इसलिए ग्रनुभाव रहित भक्ति खींचातानी है । अनुभाव रहित मनुष्य कामनावाला होता है । उस महानुभाव के कार्य में सकल चांचल्य भरा रहता है । नम्रतासे यह वात न सुननेवाले के लिए हमारा कूडल चन्नसंगमदेव घोर नरक के अलावा श्रौर क्या देगा ? 1 टिप्पणी - सच्चा वचन और अनुभाव क्या है ? ( ५२३) वचन रचनाका अनुभाव जानता हूं कहनेवाले - तुम सुनो। वचन क्या है ? रचना क्या है ? अनुभाव यदि तुम जानते हो तो कहो, नहीं तो सुनो । ग्रात्म तृप्तिका ज्ञान जाना तो वचन, स्थावर और जंगममें लय होकर रह सके तो वचन । षड्विकारोंसे प्रभावित, प्रवाहित न होते हुए स्थिर रह सके तो अनुभावी । वेद, शास्त्र, पुराण, आगमादिको जाननेवाला पंडित है, विद्वान है, किंतु ग्रनुभावी नहीं । क्योंकि वह ब्रह्मका जूठन है । सत्व रज श्रमको संयत करके रहने से सहजत्व स्थिर और स्थित होगा । यह न जानते हुए वेदाभ्यास जानता हूं कहनेवालोंका समूह क्या अनुभावी है ? नहीं, वह मुख स्तुति करके अपना पेट पालनेवाले उदरपरायण हैं । मेरे स्वामी कूडलसंगम देवा तुम्हारे अनुभावियों को तुम ही कहूंगा । ( ५२४) अड़सठ सहस्र वचन गा-गा करके थक गया है मेरा मन गानेका वही वचन, देखनेका वही वचन, विषय छोड़ करके निर्विषय होनेका वही वचन कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुनमें । टिप्पणी :- सच्चा ब्राह्मण । (५२५) वेद देख करके वेदाध्ययन किया तो क्या ब्राह्मरण हो गया ?"

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