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परमात्मा कहां है ?
विवेचन-स्वलीलासे सृष्टिका सृजन करके शुद्ध चिद्रूप सत्य "भूमिके अन्दर छिपी संपत्तिकी तरह" अव्यक्त रूपसे रहता है । इस विश्वकी प्रत्येक वस्तु उसी सत्यसे निर्मित है और वह सत्य सूक्ष्म रूपसे सर्वत्र व्याप्त है किंतु यह विश्व तथा विश्वकी कोई वस्तु पूर्ण रूपसे सत्य नहीं कही जा सकती। तव भला उस सत्यको कहाँ खोजना होगा ? इस प्रश्नके उत्तरमें वचनकार कहते हैं कि वह सत्य सर्वत्र विद्यमान है। किंतु उसका प्रकाश केवल निर्मल
आत्मामें पड़ता हैं, जैसे सूर्यके किरण सर्वत्र पहुँचते हैं किंतु उसका प्रतिबिम्ब केवल शांत जलाशयमें अथवा स्वच्छ दर्पण में पड़ता है । यदि हम अपना अंत:करण निर्मल बना लेंगे तो वहीं हमें उसका दर्शन होगा। ___ सर्व सामान्य लोग "वह वहाँ होगा" "यहाँ होगा" कह कर अनेक प्रकारके देवताओंकी, मूर्तियोंकी पूजा करते हैं। तीर्थ यात्रा करते हैं । वह सत्य-तत्त्व इन सबके परे है । उस अनंत गुण, अनन्त शक्तिका कोई एक अंश ले कर देवी देवताओंके प्रतीक बनाये जाते हैं । श्रद्धाशील लोग अनेक प्रकारसे उसकी पूजा करते हैं, किंतु वह शुद्ध चिन्मय है इसलिये निर्मल अन्तःकरणमें ही वास करता है। वहीं पर उसका साक्षात्कार होगा। इसलिये उसने कहा है मैं ज्ञानियोंके तथा भक्तोंके हृदयमें वास करता हूँ !" ।
वचन-(३८) (लोग उसे) "अणुरेणु महात्म" कहते हैं । कहते हैं "अणुरेणु तृण-काष्ठमें है" नहीं वावा नहीं, मैं नहीं मानता । वह शरण सन्निहित है, कहता है "भक्त काय मम काय !" वह तो दासोहम्-परिपूर्ण है। सद् हृदय में उसने अपना सिंहासन बना लिया है, वहाँसे वह हिलनेकी वात भी नहीं करता कलिदेवय्य ।
टिप्पणी-शरण सन्निहित=शरण=भक्त+सन्निहित पास, भक्त काय मम काय =भक्तोंकी देह ही मेरी देह है । दासोहम् परिपूर्ण =जो दासोहम् कहता है उसमें पूर्ण रूपसे वास ।
(३६) यदि (वह) वेदोंमें होता तो भला वहाँ प्राणीवध कैसे होता? यदि (वह) शास्त्रोंमें होता तो वहाँ असमानता कैसे होती ? यदि (वह) गिरि शिखरों पर होता तो क्या वहाँ गये हुए लोग (उसे छोड़कर) वापिस लौटते ? इन निर्बुद्ध मनुष्योंको क्या कहूँ मैं ? तन-मन वचनसे जो शुद्ध है उसके हृदयमें "तुम्हें (ईश्वरको) देखा है" ऐसा कहता है अंबिगरचौडय्या ।